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चीची की उदारता

 चीची गिलहरी सुरभित वन में एक बरगद की खोह में घर बनाकर रहती थी। उसके तीन बच्चे भी उसके साथ रहते थे। उसका घर सारे सुरभित वन में मशहूर था। उसने बड़ी मेहनत से इसे बनाया था। बरगद के मोटे तने की खोह में जगह भी काफी थी। उसने तिनकों से विभाजन करके चार कमरे बनाए थे। एक कमरे में वह दाना एकत्रित करके रखती थी। दूसरे में नरम घास बिछाकर सोने के लिए इंतजाम किया था। तीसरे में बच्चे सारा दिन खेलते थे। पड़ोस की टिन्नी गौरैया व मिनमिन मैना के बच्चे भी चीची के बच्चों के साथ खेलने आते और चौथे वाले कमरे में वह अपने दोस्तों टिन्नी, मिनमिन टेंटें तोता और गुटरू कबूतर के साथ गपशप करती थी। कभी कभी . बातों का दौर बहुत लम्बा चलता था। वे सब उसके घर को बहुत पसन्द करते थे। कभी किसी को भूख लगी होती तो वह सीधा चीची के घर आ जाता था। वह उसे प्यार से बिठाती, खिलाती, पिलाती और अच्छी बातें करती थी। चीची बारिश का मौसम आने से पहले ही दाना एकत्रित करना प्रारम्भ कर देती थी। बड़ी दूर-दूर तक दाने की खोज में जाती थी। वह बच्चों को समझाकर घर से निकलती और दाने की खोज करती थी । दाने का स्थान मिल जाने पर सारे दिन दाना ढोती। जब शाम होन

अनमोल वचन Anmol vachan

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 'हमने अपने जीवन में मधुरता रखनी है और सद्भाव में चलते हुए सभी को प्यार बांटना हैं। संदेश छोटा हो या बड़ा जब हम उसे अपनी जिंदगी में उतारेंगे तो जीवन पर उसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा और हम एक बेहतर इन्सान बन सकेंगे। परमात्मा को हमसे बेहतर पता है कि हमें क्या चाहिए और इसने हमें जो दिया है बहुत अच्छा दिया है। जितना हम शुकराने के भाव में रहेंगे उतना हमारा जीवन सुन्दर बनेगा और हम अपने आपको एक इन्सान कहलाने के काबिल बना पाएंगे। सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज जीवन के विकास के लिए अभिमान का त्याग परम आवश्यक है। अभिमान से घृणा का जन्म होता है, प्यार का अन्त होता है। गुरु के आदेश ही जीवन को सफल बनाते हैं।  जीवन का एक पल करोड़ों स्वर्ण मुद्राओं के देने पर भी नहीं मिलता है। कुछ नहीं करोगे तो कुछ नहीं बनोगे । - चाणक्य आत्म-त्याग से आप दूसरों को निःसंकोच त्याग करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। हमारी भक्ति तभी दृढ़ होगी जब सुमिरण में हमारा मन लगा होगा, सत्संग में बैठकर हमारा मन इधर-उधर नहीं भागेगा और सेवा भी तभी परवान है जब हमारी भक्ति मर्यादा के अनुसार होगी। कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल मे

एवरेस्ट नाम कैसे पड़ा

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 सन् 1852 में भारत सरकार के एक सर्वेक्षण दल ने संसार के इस सर्वोच्च पर्वत शिखर के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारियां तथा सूचनाएं इकट्ठी कीं। सर्वेक्षण दल के एक बंगाली क्लर्क राधानाथ सिकदर ने इस पर्वत शिखर के सम्बन्ध में तत्कालीन सर्वेक्षक जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट को जानकारी दी। सिकदर ने इस पहाड़ी चोटी की ऊँचाई तथा उसकी स्थिति की भी खोजबीन की थी। सिकदर को तो कुछ नहीं मिला लेकिन काफी समय के बाद जब इस चोटी के नामकरण का सवाल पैदाहुआ वो सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर चोटी का नाम रख दिया गया। शुरुआत में माउंट एवरेस्ट लोगों के लिए जिज्ञासा और आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बना रहा। सन् 1921 में प्रथम बार इस चोटी तक पहुँचने के लिए इंग्लैंड से एक अनुसंधान दल रवाना हुआ मगर वह मामूली जानकारी ही प्राप्त कर सका। सन् 1922 में एवरेस्ट पर आरोहण की चुनौती स्वीकार की गयी। तत्पश्चात् अनेक बार एवरेस्ट पर चढ़ने की कोशिश की गयी मगर असफलता ही हाथ लगी। 29 मई सन् 1953 को पूर्वाहन साढ़े ग्यारह बजे न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी तथा एक शेरपा तेनजिंग नॉर्गे एवरेस्ट पर आरोहण में सफल हो गये। इन पर्वतारोहियों का कथन था कि माउंट एवरेस्ट प

नेत्रहीन को पढ़ने के लिए लिपि

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 दोस्तों क्या आप सबको पता है कि नेत्रहीन को पढ़ने के लिए लिपि किसने खोज किया आइए जानते हैंलुई ब्रेल ने स्वयं अन्धे होते हुए भी विश्वभर के नेत्रहीनों को नेत्रवालों के समान शिक्षित होने के लिए एक साधन जुटाया। उन्होंने एक ऐसी लिपि का आविष्कार किया, जिसके उभरे हुए अक्षरों को छूकर नेत्रहीन साक्षर हो सकते हैं। इसे ही 'ब्रेल लिपि' कहा जाता है। लुई ब्रेल का जन्म 1809 में फ्रांस में हुआ था । उनके पिता पेरिस में चमड़े का सामान बनाते थे। बालक ब्रेल ने एक दिन खेलते हुए चमड़ा सीने का औजार आँख में मार लिया। एक आँख जाने के बाद कुछ दिनों बाद दूसरी आँख भी खराब हो गई। बालक ब्रेल पाँच वर्ष की आयु में अन्धा हो गया। पिता ने उसे दृष्टिहीनों के स्कूल में दाखिल करवा दिया। एक अवकाश प्राप्त सैनिक ने कागज पर उभरे बिन्दुओं से पढ़ना सिखाया। ब्रेल को उस लिपि में कुछ कमियां लगीं। उसने कुछ वर्षों के श्रम से एक नई उभरी हुई लिपि का आविष्कार किया, जिसे दृष्टिहीन पड़ सकते हैं। आज इस लिपि में अनेक पुस्तकें भी छप चुकी हैं। ब्रेल ने स्वयं दृष्टिहीन होते हुए भी दृष्टिहीनों को जीवन में सफल होने का मार्ग दिखाया। ब्रेल

गिलहरी और चूहा की कहानी

 शहर की अनाज मंडी के निकट ही एक विशाल बरगद का पेड़ था। उस पेड़ के कोटर में रहती थी मिक्की गिलहरी । मिक्की यहाँ पर पिछले महीने ही आई थी। इससे पहले वह जंगल से थोड़ी दूर नदी के किनारे वाले पीपल के पेड़ पर रहती थी। मिक्की को वहाँ खाने को कुछ अधिक नहीं मिल पाता था। बस, इसीलिए उसने पीपल के पेड़ को छोड़ने का निश्चय किया था। इस बरगद के पेड़ के नीचे बिल में रहता था विक्की चूहा। विक्की चूहे को भी यहाँ आए हुए सिर्फ चार दिन हुए थे। इसी वजह से वह अन्य चूहों के साथ नहीं घुल-मिल पाया था । एक दिन की बात है। मिक्की गिलहरी अनाज की तलाश में जाने के लिए पेड़ से नीचे उतरने वाली थी। तभी संतुलन बिगड़ने से उसका पैर फिसला और वह धड़ाम से आकर नीचे गिरी । संयोगवश विक्की चूहा अपने बिल के बाहर खड़ा ऊपर पेड़ की ओर देख रहा था। वह तुरंत मिक्की गिलहरी के पास पहुँचा और बोला- 'बहन, क्या तुमको चोट तो नहीं आई? डॉक्टर के पास ले चलूं?' मिक्की गिलहरी को विक्की चूहे का व्यवहार अच्छा लगा और बोली- 'धन्यवाद भैया, मैं बाल बाल बच गयी वरना हड्डी पसली एक हो जाती। क्या मुझसे दोस्ती करोगी?' तभी विक्की चूहे ने मिक्की गि

Brahmand

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 ब्रह्मांड हकई रहस्यों का पिटारा है, कुदरत का कुदरती जादू शायद इस पर मेहरबान है। कुदरत के हसीन नजारे चांद, सूरज, तारे, पेड़-पौधे, जल आदि जीवन में प्राण फूंकते हैं, खैर.... आखिर ब्रह्मांड की उम्र कितनी है, इस संदर्भ में पुराण, धार्मिक मान्यताएं और वैज्ञानिक तथ्यों में काफी अन्तर है। वैज्ञानिकों की नई खोजें कहती हैं कि कम से कम 32 अरब साल तक ब्रह्मांड का बाल भी बांका नहीं होगा। हाँ, जिस 'डार्क एनर्जी' को इस विशाल ब्रह्मांड के लिए खतरा माना जा रहा था, वह लंबे समय तक इसे कोई क्षति नहीं पहुँचा सकेगी। 26 अगस्त 1920 में, इस संदर्भ में वैज्ञानिक एडविन ने अपने शोध लेख में लिखा था- ब्रह्मांड में विभिन्न आकाशगंगाएं लगातार एक दूसरे से दूर होती जा रही हैं, इससे उसका क्षेत्रफल बढ़ रहा है। आकाशगंगाएं दूर होने का कारण 'डार्क एनर्जी' है, जो ब्रह्मांड के हर हिस्से में है और वह उसका शोधन करती रहती है यही नहीं, वह गुरुत्त्वाकर्षण का प्रतिरोध भी करती है। इस कारण आकाशगंगाओं के दूर होने और ब्रह्मांड के विस्तृत होने के कारण 'डार्क एनर्जी' में भी वृद्धि हो रही है। इसी 'एनर्जी'

Growing plants

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A seed need water sunlight and air to  grow  into a new plants.  The proess by which a new plants grows from a seed is called germination.   Some seeds do not get enough favourable condition to grow into a new plants Some seeds eaten b y birdS are insects. Some get destroyed by harsh weather. Not all seed grow into new plants. Seed needs enough water,sunlight and air to grow. With any of these requirement missing, the seeds will wither and die. DISPERSAL OF SEED S eed needs water to soften the seed coat. The also needs air and enough sunlight. If they are all sown at the same place theymight not get enough of there requiemen. HENCE seeds needs to be sown far away feom each other. thew natural process by which seeds are scattes to far off places by wind, water ,animals etc. is called dispersal  of seeds. There are various agentsthat help the plants disperse its seeds. They are called AGENTS OF DISPERSAL.