गिलहरी और चूहा की कहानी
शहर की अनाज मंडी के निकट ही एक विशाल बरगद का पेड़ था। उस पेड़ के कोटर में रहती थी मिक्की गिलहरी । मिक्की यहाँ पर पिछले महीने ही आई थी। इससे पहले वह जंगल से थोड़ी दूर नदी के किनारे वाले पीपल के पेड़ पर रहती थी। मिक्की को वहाँ खाने को कुछ अधिक नहीं मिल पाता था। बस, इसीलिए उसने पीपल के पेड़ को छोड़ने का निश्चय किया था।
इस बरगद के पेड़ के नीचे बिल में रहता था विक्की चूहा। विक्की चूहे को भी यहाँ आए हुए सिर्फ चार दिन हुए थे। इसी वजह से वह अन्य चूहों के साथ नहीं घुल-मिल पाया था ।
एक दिन की बात है। मिक्की गिलहरी अनाज की तलाश में जाने के लिए पेड़ से नीचे उतरने वाली थी। तभी संतुलन बिगड़ने से उसका पैर फिसला और वह धड़ाम से आकर नीचे गिरी । संयोगवश विक्की चूहा अपने बिल के बाहर खड़ा ऊपर पेड़ की ओर देख रहा था। वह तुरंत मिक्की गिलहरी के पास पहुँचा और बोला- 'बहन, क्या तुमको चोट तो नहीं आई? डॉक्टर के पास ले चलूं?'
मिक्की गिलहरी को विक्की चूहे का व्यवहार अच्छा लगा और बोली- 'धन्यवाद भैया, मैं बाल बाल बच गयी वरना हड्डी पसली एक हो जाती।
क्या मुझसे दोस्ती करोगी?' तभी विक्की चूहे ने मिक्की गिलहरी के सामने प्रस्ताव रखा। मिक्की ने सिर हिलाकर सहमति दे दी। दोनों
एक-दूसरे के दोस्त बन गए। अब विक्की चूहे ने शंका समाधान करने की गरज से मिक्की गिलहरी से पूछा- 'लेकिन पेड़ से नीचे उतरकर तुम कहाँ जाने को थी?"
अनाज लाने को वह पास में ही भारतीय खाद्य निगम का गोदाम है न? उसमें पूरे साल खूब अनाज ही अनाज भरा रहता है। वहीं से मैं खाने को ले आती हूँ जिसे कोटर में बैठकर मजे से खाती रहती हूँ।'- मिक्की गिलहरी ने जवाब दिया।
'वाह! फिर तो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ। पेट भरकर अनाज खाने का सुख लूटूंगा। मैं जिस घर में रहता था उसकी मालकिन निहायत कंजूस थी। घर में सीमित सामग्री रहती थी खाने को। फिर मेरा पेट कैसे भरता वहाँ पर?' विक्की
चूहा एक सांस में पूरी बात कह गया। 'चलो एक से भले दो' मिक्की गिलहरी ने
दोपहर होने को थी। मिक्की गिलहरी और विक्की चूहे तेज कदमों से अनाज के गोदाम की आरे बढ़ चले। वहाँ सैकड़ों ट्रक कतारों में खड़े थे। कुछ तो अनाज के बोरे उतारे जा रहे थे और कुछ बोरे लादे जा रहे थे। मिक्की और विक्की नजरें बचाकर चुपचाप गोदाम के अंदर घुस गए। किसी को भी उन पर शक नहीं हुआ क्योंकि वे अपने-अपने काम में व्यस्त थे। दोनों ने इच्छानुसार अनाज उठाया और वापस मुड़ गए। मिक्की अपने कोटर में आई और विक्की बिल में आया। फिर मजे से अनाज का सेवन किया 19/52 चैन से सो गए। आज दोनों को अच्छी नींद आई।
सुबह हुई। विक्की चूहा बिल से बाहर निकला। वह मिक्की गिलहरी की राह देख रहा था। मन में विचार आया 'शायद अभी तो सो - रही होगी।' वह पुनः बिल में घुसने को हुआ। तभी मिक्की कोटर से बाहर निकली। विक्की को देखकर मुस्कुराते हुए बोली- 'आज नहीं गिरूंगी पेड़ से।' सुनकर विक्की भी मुस्कुराया । मिक्की धीरे-धीरे नीचे उतर आई थी।
पिछले दिन की तरह ही आज भी मिक्की गिलहरी और विक्की चूहा चल पड़े अनाज के गोदाम की तरफ। मजदूर अनाज लादने और उतारने में जुटे हुए थे। दोनों गोदाम में घुस गए। गोदाम के सारे दरवाजे खुले होने से उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। फिर आवश्यकतानुसार अनाज लिया और वापस मुड़ गए। दोनों के बुरे दिन खत्म हो चुके थे। अब तो उनके सामने खुशियों का भंडार था। रोज रोज यही सिलसिला जारी रहता। देखते देखते एक वर्ष बीत चुका था। अधिक खाने की वजह से मिक्की और विक्की मोटे हो गए। उनका वजन जरूरत से ज्यादा बढ़ गया। नतीजा यह निकला कि अब उन्हें चलने-फिरने में तकलीफ होने लगी थी।
'क्या किया जाए?' मिक्की गिलहरी कोटर में पड़ी पड़ी सोचा करती। उधर विक्की चूहा भी बिल के भीतर बुदबुदाता, 'इस मोटापे ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा है। दोनों ने भालू डॉक्टर के पास जाने की सोची।
डॉक्टर भालू का क्लीनिक जंगल में एक पेड़ के नीचे था। वे रोगी को देखते ही उसका मर्ज पहचान लेते थे। शाम का समय था। मिक्की और विक्की को देखते ही बोल पड़े 'मोटापे से परेशान लगते हो?" 'जी!, मिक्की और विक्की ने उदास होकर कहा
तुम दोनों को वजन घटाने का नुस्खा बताता हूँ। फिर डॉक्टर भालू ने दोनों से खान-पान संबंधी सारी जानकरी ली। अंत में कहा- चोरी करना छोड़ो, श्रम से नाता जोड़ो। मिक्की और विक्की ने डॉक्टर भालू से कुछ गोलियां भी लीं। एक-एक शीशी पीने की दवा भी दी साथ में दोनों क्लीनिक से बाहर निकले। चींटियों का काफिला कतारबद्ध होकर वापस अपने निवास स्थान की ओर आ रहा था। मिक्की और विक्की ने एक-दूसरे की ओर देखा और तेज कदमों से चलने लगे।
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