सुनहरे हंस
बहुत समय पहले की बात है। सूर्यनगर में ब विक्रम सिंह नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके महल में बहुत सुन्दर बाग था। बाग में स्वच्छ जल से भरी एक नीली झील थी। " झील में सुनहरे पंख वाले बहुत से हंस रहते थे। वे हंस राजा को हर दिन एक सुनहरा पंख दिया करते थे। राजा उसे अपने खजाने में रख देता ।
एक बार सुनहरे पंखों वाला एक बहुत बड़ा हंस कहीं से उड़ता हुआ नीली झील पर आया
जैसे ही वह पानी में उतरने लगा. झील में रहने वाले हंसों ने कहा, "हम तुम्हें झील में नहीं उतरने देंगे। हम यहाँ रहने का मूल्य चुकाते हैं। राजा को एक पंख रोज देते हैं
बाहर से आए हंस ने कहा, "इतना गुस्सा मत करो। मैं भी बारी आने पर तुम्हारी तरह अपना एक पंख दे दिया करूंगा।"
"नहीं, नहीं हम बाहर से आए किसी भी हंस को यहाँ नहीं रहने देंगे।" हंसों ने एक स्वर में कहा ।
बड़ा हंस हठधर्मी पर उतर आया तो झगड़ा बढ़ गया "ठीक है, यदि मैं यहाँ नहीं रह सकता तो तुम्हें भी नहीं रहने दूंगा।' इतना कहकर बड़ा हंस महाराज विक्रम सिंह के दरबार में पहुँच गया।
"महाराज, आपकी नीली झील में रहने वाले हंस मुझे नहीं रहने देते। मेरे वहाँ रहने से आपको लाभ ही होगा। मेरा पंख झील के सभी हंसों के पंखों से बड़ा है। मैंने जब उनसे कहा कि मैं महाराज के पास जाता हूँ, तो बोले हमें किसी महाराज का डर नहीं है।" बड़े हंस ने राजा को भड़काते हुए कहा ।
उसकी बात सुनकर राजा विक्रम सिंह आगबबूला हो गए- "मेरी नीली झील में रहने वाले इन हंसों की यह मजाल । "
तुरन्त उसने सैनिकों को बुलाया और आदेश दिया, "नीली झील में रहने वाले सभी हंसों को मौत के घाट उतार दो। मुझे अब उनकी जरूरत नहीं। मुझे अब बड़ा पंख मिलने लगेगा। "
राजा का आदेश पाकर सैनिक तलवार उठाये हंसों को मारने दौड़ पड़े। हंसों ने उन्हें दूर से हथियार सम्भाले आते देखा तो उनका माथा ठनका। एक बूढ़े हंस ने कहा, "साथियो, बचने का एक ही रास्ता है, यहाँ से उड़ चलो। "
सारे हंस एक साथ आकाश में उड़ गये। नीली झील हंसों से खाली हो गई तो सैनिक राजदरबार में आए। राजा को सभी बातें विस्तृत रूप से सूचित कीं।
राजा बहुत प्रसन्न हुआ। फिर बड़े हंस से बोला, मेरी झील केवल आपके लिए है। " बड़ा हंस बोला, "क्षमा करें, राजन! आपका न्याय अब
मुझे पंसद नहीं आया। इस तरह तो कल यदि मुझसे भी बड़ा हंस आ गया तो आप मुझे भी मरवा डालेंगे।"
यह कहकर उसने अपने पंख फड़फड़ाये और उड़ गया। लालच के कारण राजा को सब हंसों से हाथ धोना पड़ा
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